वो थी जिन्दगी मे तो शायरी भी थी,आशिकी भी थी।
कहीं गुम सी हो गई वो तो शायरी भी नहीं,आशिकी भी नहीं।
शायरी भी उनकी थी,आशिकी भी उनकी थी।
वो लफ्ज़ भी उनकी थी,वो बातें भी उनकी थीं।
दिल सुनता भी उन्हीं को था,
दिल समझता भी उन्हीं को था,
ना जाने कैसे ये दूरी बन गई,
ना जाने क्यों वो हमसे दूर गई,
ना जाने क्या हुआ है. आजकल,
रोने को अश्क ही नहीं,
बोलने को लफ्ज़ ही नहीं,
मन समझता नहीं दिल सम्भलता नहीं,
ये क्या हो रहा है ये क्यों हो रहा है,
है कैसी ये बेबसी अपनी,
सब खत्म सी हो गई अपनी,
इक ख्वाहिश ही अब बची दिल की
फिर मिलें हम फिर हसें हम,
फिर शायद वो शायरी आ जाये,
फिर शायद वो आशिकी आ जाये,
फिर शायद वो हँसी आ जाये,
अब बस इसी इक ख्वाहिश के लिए,
जिन्दगी भी बची है बन्दगी भी बची है।
~ ANKIT VERMA
फिर शायद वो शायरी आ जाये,
फिर शायद वो आशिकी आ जाये,
फिर शायद वो हँसी आ जाये,
अब बस इसी इक ख्वाहिश के लिए,
जिन्दगी भी बची है बन्दगी भी बची है….बहुत खूब।
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धन्यवाद आपका
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Waah, bhut khub👌👌
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Dhanyawad
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Nice poem👍
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Thanks
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Welcome bUddy😊
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Bus ab taiyaar ho jaao-minya Ghalib ya mir ya faiz ban ne ki khatir…pyaar ke raste bahut lambe hote hein.kadam ruk nahi sakte….mehbooba mile ya uska saaya-chalte hi jaana he.
Vese bahut sunder likha he aapne.ibtdaaye ishq me rota he kya;aage aage dekhye hota he kya….
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I am always ready…..
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Good.young man!!
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बहुत खूब लिखा है आपने।
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धन्यवाद
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😊
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बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी।
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Thanku very much
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