चले थे हम इक अनजाने सफर पर,
इक अनजाने नगर को, इक.अनजाने डगर पर,
चलते चलते हमें यूं कुछ ऐसा हुआ,
पाँव थम सी गई,नजर रूक सी गई,
दिल थम सा गया अब उन्हें देखकर,
वो परियों की रानी,
उनकी भोली सकल पर प्यारी सी नादानी,
उनकी बातों की मस्ती,
कुछ दिल को ऐसी थी लगती,
मैं बेहोश हो गया,
कसम से मैं बेहोश हो गया,
मैंने दिल दे दिया,
यारों मुझे इश्क हो गया,
अरे हाँ हाँ यारों मुझे इश्क हो गया।
अब जब मैं बढा अनजाने सफर पर,
मुझे ये क्या हुआ,
मुझे ऐसा लगा,
मुझे वो नगर मिल गया
मुझे वो डगर मिल गया
मुझे वो मिल गई, जिसकी थी मुझे तलाश,
मुझे मकसद मिली,
मुझे हमसफर मिल गई
अब कुछ मंजिल थी मेरी,
अब इक डगर थी मेरी,
अब न अनजाने थे हम ,
न अनजाना था सफर,
जाना था कहीं दूर,
जहाँ सिर्फ मैं हूँ और मेरी हमसफर..
I LOVE YOU FOREVER……
bahut khub
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Thanku
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👉☝👌
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👍👍
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बहुत खूबसूरत रचना है आपकी।
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धन्यवाद
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Waah mere bhaii kmal likha h aapne.👌
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Dhanyawad mere bhai
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