वो भी थी इक पगली,
थोड़ी दीवानी थोड़ी मस्तानी,
थोड़ा गुरुर भी था उसे अपने हुस्न पर,
थोड़ी हसीन भी थी थोड़ी शर्मीली,
जब देखता था मैं कभी उसको,
यूं पलकें झुका वो लेतीं थीं,
थोड़ी शर्माती थोड़ी मुस्काती,
यूं दिल को मेरे छू लेती थीं ,
जी करता था सब भूलकर,
मैं उनकी बाहों में खो जाऊं,
उन्हें चूम लूं मैं उन्हें पा जाऊं,
पर ख्वाब कहाँ सच होता है,
बस.नीद तक सीमित होता है,
बस नींद खुली सब खाली था,
न वो थी वहां न वो एहसास ही था,
न वो आँखें मिली न प्यार हुआ,
न बाहें मिली न हुआ कोई याराना ,
ख्वाब टूट गया दिल भी टूट गया,
तो अब कहने को बचा ही क्या।
~ ANKIT VERMA
बहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने।
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धन्यवाद आपको
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बेहद खूबसूरत रचना।👌👌
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बहुत बहुत धन्यवाद आपने प्रशंसा की
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Beautiful.
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Thank you
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Welcome,dear!!
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