जब से मिली हो तुम मुझे
मैं कुछ खो सा गया हूँ,
जागता हूँ या सोता हूँ,
सब भूल सा गया हूँ,
दिन में भी तुम हो
रातों में भी तुम हो
सासों में भी तुम, धड़कन में भी तुम हो
इन अनोखी सी बातों के अनोखापन में
मैं खो सा गया हूँ,
तेरे प्यार के दरिया में
मैं खो सा गया हूँ,
ऐ जाना तुझसे मिलके
मैं तेरा हो सा गया हूँ,
अब तो मैं तुझमें बस खो जाऊं,
तेरे इश्क की सब भंग पी जाऊँ
तुझसे ही रहूँ तुझी में खो जाऊँ
बस तू अपनी बाहों को फैलाए रहे
और मैं उसी में खो जाऊं
बस खो जाऊँ तेरा हो जाऊं।
~ ANKIT VERMA
बहुत खूब लिखा है। 👌👌
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Thank you Rajani ji
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कुछ पुरानी याद आ गई आपकी कविता पढ़ कर
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That’s nice to me that you feel my poem. Thank you 👍👍
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