
nadiya ishq karti hain un najaro se
jo unhe rasto me mila karti hain
kisan ke khet ki hariyali bn
vo ithla uthati hain
kisi ki pyas bujha di
to khilkhila uthati hain
kahin uchai se gir
hame bijli bana ke deti hain
jangal se bhi gujre to
janvaro ki aah bujha deti hain
ja milti hai sagar me
to uska kharapan ghata deti hain
kahi sundarvan delta ban
ausadhiyo aur jio ki aavas bna deti hai
ant to sabka hota hai
par ant me bhi machhaliyo ka aavas bna deti hain
yuhi nadiyan ishq karti hai hm sbse
hamare jine ki andaj badha deti hai
apni jal rupi amrit hme pila kar
hame khusi se jine ki aase dekar
khud ko samudra ki gras bana deti hain
ye nadiya ni apni maa hain
jo apni jal rupi dudh se
hamari pet bhara karti hain
nadiya ishq karti hai hmse
hme bahut kuch diya karti hain
नदियाँ इश्क़ करती हैं उन नजरो से,
जो उन्हें रास्तो में मिला करती हैं |
किसान के खेत की हरियाली बन,
वो इठला उठती हैं |
किसी की प्यास बुझा दी,
तो खिलखिला उठती हैं |
कहीं उचाई से गिर,
हमें बिजली बना के देती हैं |
जंगल से भी गुजरे तो,
जानवरो की आह बुझा देती हैं |
जा मिलती है सागर में तो क्या,
उसका खारापन घटा देती हैं |
कही सुंदरवन डेल्टा बना,
औसधियो और जीवों की आवास बना देती है |
अंत तो सबका होता है,
पर अंत में भी मछलियों का आवास बना देती हैं |
यूँही नदियां इश्क़ करती है हम सबसे,
हमारे जीने की अंदाज बढ़ा देती है |
अपनी जल रूपी अमृत हमे पीला कर,
हमें खुसी से जीने की आस देकर,
खुद को समुद्र की ग्रास बना देती हैं |
ये नदियाँ नहीं अपनी माँ हैं,
जो अपनी जल रूपी दूध से,
हमारी पेट भरा करती हैं |
नदियाँ इश्क़ करती है हमसे,
हमे बहुत कुछ दिया करती हैं |
Khubsurat rachna….👌👌
प्रेम किसे कहते उसे नही पता,
जो पर्वत की ऊंची चोटियों से पिघले हिम को,
अपनी दोनो भुजाओं में समेटे,
चट्टानों से चोट खाते,
हर बांधो को तोड़ते,
अपना मार्ग स्वयं बना,
सागर में खो जाने के पूर्व स्वयं,
न जाने कितने ही जीवों का
आशियाना बन जाते,
प्रेम किसे कहते उसे ज्ञात नही,
फिर भी, बिना भेदभाव किए
न जाने कितने ही जीवों का प्यास बुझाते,
नही करते प्रेम का बखान,
खेतों में लहलहाते पौधे,
फलों से लदे वृक्ष,
एवं असंख्य वनस्पतियां भी,
मगर असंख्य जीवों का भूख मिटाते,
और हम प्रेम के बड़े बड़े,
नित्य नए ग्रंथ लिखते,
खुद को सर्वश्रेष्ठ कहते,
और करते लूटपाट,हत्या,बलात्कार,
उजाड़ते नित्य किसी न किसी के आशियानें,
खेलते भावनाओं से और करते अत्याचार,
काश! हम भी प्रेम को नही समझते,
वृक्षों,वनस्पतियों की तरह रहते,
नदियों को तरह बहते,
फिर इन आंखों से,अश्क नही बहते,
फिर इन आंखों से,अश्क नही बहते।
!!!मधुसूदन!!!
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dhanyavad sirji
bahut khub kaha aapne sir ki
काश! हम भी वृक्षों,वनस्पतियों की तरह रहते,
नदियों को तरह बहते,
फिर इन आंखों से,अश्क नही बहते,
फिर इन आंखों से,अश्क नही बहते।
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